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बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय ।। |
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ऐसी बानी बोलिये,मन का आपा खोय । औरन को शीतल करै, आपसी शीतल होय।। |
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शब्द बराबर धन नहीं, जो कोय जानै बोल। हीरा तो दामों मिलै, सब्दहिं मोल न तोल।। |
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एक शब्द सुख खानि है, एक शब्द दुख रासि। एक शब्द बंधन करै, एक शब्द गल फाँसि ।। |
प्रेम प्रीति से जो मिलै, तासें मिलिये धाय । कपट राखि के जो मिलै, तासें मिलै बलाय ॥
कबीर ह्रदय कठोर के, शब्द न लागै सार । सुधि बुधि के हिरदे बिधै, उपजै ज्ञान विचार ॥
काल करै सो आज कर, आज करै सो अब । पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब ॥
तिनका कबहुँ न निंदिए, जो पाँयन तर होय । कबहूँ उड़ि आँखिन परै, पीर घनेरी होय ॥
दाता दाता चलि गये, रहि गये मक्खीचूस । दान मान समुझे नहीं, लड़ने को मजबूत ॥
जब तू आया जगत में, लोग हँसे तू रोय । ऐसी करनी ना करो, पीछे हँसे सब कोय ॥
साँचे को साँचा मिलै, अधिका बड़ै सनेह । झूठे को साँचा मिलै, तड़ दे टूटे नेह ।।
करैं बुराई सुख चहै, कैसे पावै कोय । रोपै पेड़ बबूल का, आम कहाँ से होय ॥
ऊँचा देखि न राचिये, ऊँचा पेड़ खजूर । पंथि न बैठे छाँयड़े, फल लागा अति दूर ।।
पाँच तत्व का पूतरा, मानुष धरिया नाम । चार दिनों के कारने, फिर-फिर रोके ठाम ॥
चलती चाकी देखि के, दिया कबीरा रोय । दो पाटन बिच आय के, साबुत बचा न कोय ॥
आये हैं तो जायेंगे, राजा रंक फकीर । इक सिंघासन चढ़ि चले, इक बाँधे जात जँजीर ॥
कबीर यह जग कुछ नहीं, खिन खारा खिन मीठ । काल्हि जो बैठा मंडपै, आज मसानै दीठ ॥
माली आवत देखि के, कलियाँ करें पुकार । फूली फूली चुनि लई, काल हमारी बार ॥
झूठा सुख को सुख कहै, मानत है मन मोद। जगत चबेना काल का, कछु मूठी कछु गोद ॥
सुख के संगी स्वारथी, दुख में रहते दूर। कहैं कबीर परमारथी, दुख सुख सदा हजूर ॥
कुशल कुशल जो पूछता, जग में रहा न कोय। जरा मुई ना भय मुआ, कुशल कहाँ ते होय ॥
खाय पकाय लुटाय कै, करि लै अपना काम । चलती बिरिया रे मनाँ, संग न चलै छदाम ॥
या दुनिया में आय के, छाँड़ि देय तू ऐंठ । लेना हो सो लेय लै, उठी जात है पैंठ ॥