कबीर दास जी के 100+ अनमोल दोहे

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कबीर दास जी के दोहे : आज के इस लेख में हम कबीर दास जी के अनमोल दोहे साझा कर रहे हैं जो की बहुत ही सुन्दर रचना है। अगर आप को भी कबीर जी के दोहे पसंद हैं तो इस लेख के अंत तक बने रहिए...
कबीर जी के अनमोल दोहे,
तो चलिए फिर पढ़ते हैं कबीर जी के अनमोल दोहे। जो की निम्नलिखित हैं – 

कबीर दास जी के दोहे
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय ।।

कबीर दास जी के दोहे,
ऐसी बानी बोलिये,मन का आपा खोय ।
औरन को शीतल करै, आपसी शीतल होय।।

शब्द बराबर धन नहीं, जो कोय जानै बोल।
हीरा तो दामों मिलै, सब्दहिं मोल न तोल।।


एक शब्द सुख खानि है, एक शब्द दुख रासि।
एक शब्द बंधन करै, एक शब्द गल फाँसि ।।

 

प्रेम प्रीति से जो मिलै, तासें मिलिये धाय । कपट राखि के जो मिलै, तासें मिलै बलाय ॥ 



कबीर ह्रदय कठोर के, शब्द न लागै सार । सुधि बुधि के हिरदे बिधै, उपजै ज्ञान विचार ॥ 

 


काल करै सो आज कर, आज करै सो अब । पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब ॥



तिनका कबहुँ न निंदिए, जो पाँयन तर होय । कबहूँ उड़ि आँखिन परै, पीर घनेरी होय ॥



दाता दाता चलि गये, रहि गये मक्खीचूस । दान मान समुझे नहीं, लड़ने को मजबूत ॥



जब तू आया जगत में, लोग हँसे तू रोय । ऐसी करनी ना करो, पीछे हँसे सब कोय ॥



साँचे को साँचा मिलै, अधिका बड़ै सनेह । झूठे को साँचा मिलै, तड़ दे टूटे नेह ।।



करैं बुराई सुख चहै, कैसे पावै कोय । रोपै पेड़ बबूल का, आम कहाँ से होय ॥



ऊँचा देखि न राचिये, ऊँचा पेड़ खजूर । पंथि न बैठे छाँयड़े, फल लागा अति दूर ।।



पाँच तत्व का पूतरा, मानुष धरिया नाम । चार दिनों के कारने, फिर-फिर रोके ठाम ॥



चलती चाकी देखि के, दिया कबीरा रोय । दो पाटन बिच आय के, साबुत बचा न कोय ॥



आये हैं तो जायेंगे, राजा रंक फकीर । इक सिंघासन चढ़ि चले, इक बाँधे जात जँजीर ॥



कबीर यह जग कुछ नहीं, खिन खारा खिन मीठ । काल्हि जो बैठा मंडपै, आज मसानै दीठ ॥



माली आवत देखि के, कलियाँ करें पुकार । फूली फूली चुनि लई, काल हमारी बार ॥



झूठा सुख को सुख कहै, मानत है मन मोद। जगत चबेना काल का, कछु मूठी कछु गोद ॥


सुख के संगी स्वारथी, दुख में रहते दूर। कहैं कबीर परमारथी, दुख सुख सदा हजूर ॥


कुशल कुशल जो पूछता, जग में रहा न कोय। जरा मुई ना भय मुआ, कुशल कहाँ ते होय ॥


खाय पकाय लुटाय कै, करि लै अपना काम । चलती बिरिया रे मनाँ, संग न चलै छदाम ॥


या दुनिया में आय के, छाँड़ि देय तू ऐंठ । लेना हो सो लेय लै, उठी जात है पैंठ ॥


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